क्या है ग्रीन लोन, जो भारतीय बैंकों के लिए साबित हो रही संजीवनी! रिसर्च में दावा- वित्तीय सेहत में भी हो रहा सुधार
Banks Green Loan: भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) लखनऊ के एक अध्ययन के अनुसार, जिन बैंकों के पास ग्रीन लोन का अधिक हिस्सा होता है, वे लंबे समय में अधिक वित्तीय स्थिरता हासिल करते हैं.
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Banks Green Loan: भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) लखनऊ के एक अध्ययन के अनुसार, जिन बैंकों के पास ग्रीन लोन का अधिक हिस्सा होता है, वे लंबे समय में अधिक वित्तीय स्थिरता हासिल करते हैं. यह शोध Finance Research Letters नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें बताया गया है कि अगर बैंक गैर-कार्बन वाले (कम प्रदूषण फैलाने वाले) उद्योगों को अधिक लोन देते हैं, तो उनके लोन पोर्टफोलियो की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है. यह शोध भारतीय बैंकिंग सिस्टम में टिकाऊ (सस्टेनेबल) लोन की रणनीतिक अहमियत को दर्शाता है.
ग्रीन लोन क्या होता है?
ग्रीन लोन एक विशेष प्रकार का वित्तीय सहयोग (फंडिंग) होता है, जिसमें उधार लेने वाले व्यक्ति या संस्था को सिर्फ उन्हीं परियोजनाओं (प्रोजेक्ट्स) के लिए पैसे मिलते हैं, जो पर्यावरण को लाभ पहुंचाने में मदद करते हैं.
भारत में ग्रीन लोन की चुनौतियां
IIM लखनऊ के प्रोफेसर विकास श्रीवास्तव के अनुसार, भले ही दुनियाभर में ग्रीन लोन को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की जा रही हैं, लेकिन विकासशील देशों, खासकर भारत में, इसे अपनाने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिए जा रहे हैं.
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उन्होंने बताया कि भारतीय बैंक अभी भी अधिकतर लोन प्रदूषण फैलाने वाले (कार्बन-इंटेंसिव) उद्योगों को देते हैं क्योंकि भारत में ग्रीन एसेट्स (पर्यावरण अनुकूल संपत्तियाँ) को पहचानने और बढ़ावा देने के लिए कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है. उनके शोध में इस कमी को पूरा करने के लिए एक रूपरेखा (फ्रेमवर्क) तैयार की गई है, जिससे कम प्रदूषण वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सके और यह देखा जा सके कि उनका बैंक लोन पर क्या प्रभाव पड़ता है.
भारतीय बैंकों की रैंकिंग और भविष्य की रणनीति
इस अध्ययन में पहली बार भारतीय बैंकों को उनके लोन पोर्टफोलियो की सस्टेनेबिलिटी (टिकाऊपन) के आधार पर रैंकिंग दी गई है. इस विश्लेषण से यह पता चला है कि बैंक अपने वित्तीय स्थायित्व को बनाए रखते हुए, कैसे पर्यावरण के अनुकूल क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं.
ग्रीन लोन बैंकों की भूमिका और संभावनाएं
यह शोध बताता है कि भारतीय बैंक, भारत को कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं. यदि वे गैर-कार्बन उद्योगों को अधिक लोन देंगे, तो उनके डिफॉल्ट (ऋण न चुकाने) का खतरा कम होगा, वे वैश्विक सस्टेनेबिलिटी लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठा सकेंगे और देश की अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूत बना सकेंगे.
IIM लखनऊ की एसोसिएट प्रोफेसर सौम्या सुब्रमण्यम के अनुसार, यह अध्ययन ग्रीन लोन की एक स्पष्ट परिभाषा तय करने और बैंकों को इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है. इससे बैंक अपने लोन पोर्टफोलियो को अधिक स्थायी और लाभकारी बना सकते हैं.
रेगुलेटरी सपोर्ट की ज़रूरत
शोधकर्ताओं का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों से होने वाले जोखिमों को देखते हुए, भारतीय बैंकों को अपने लोन पोर्टफोलियो में बदलाव लाने की जरूरत है.
IIM लखनऊ की रिसर्च स्कॉलर विद्या महादेवन के अनुसार, बिना किसी सरकारी नियम या प्रोत्साहन के, बैंक ग्रीन लोन को तेजी से अपनाने में दिक्कत महसूस कर सकते हैं. इसलिए, इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए नीति-निर्माताओं को हस्तक्षेप करना चाहिए और नियम बनाने चाहिए.
उन्होंने यह भी कहा कि यह अध्ययन ग्रीन फाइनेंस को मुख्यधारा की बैंकिंग प्रणाली में शामिल करने का एक डेटा-आधारित तरीका प्रदान करता है, जिससे भारतीय बैंक वित्तीय रूप से मजबूत बने रहते हुए एक अधिक टिकाऊ भविष्य में योगदान दे सकते हैं.
01:04 PM IST